Kaise Samjhe Adhik Maas Ko
कैसे समझें अधिक मास
को?
पुरुषोत्तम
मास का अर्थ
जिस माह में
सूर्य संक्रांति नहीं
होती वह अधिक
मास कहलाता होता
है। इस वर्ष
यह 17 जून से
16 जुलाई तक है।
इन दिनों में
खास तौर पर
सर्व मांगलिक कार्य
वर्जित माने गए
है, लेकिन यह
माह धर्म-कर्म
के कार्य करने
में बहुत फलदायी
है। इस मास
में किए गए
धार्मिक आयोजन पुण्य फलदायी
होने के साथ
ही ये आपको
दूसरे माहों की
अपेक्षा करोड़ गुना अधिक
फल देने वाले
माने गए हैं।
पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद् भागवत ग्रंथ दान का विशेष महत्व है।
आप सभी इस्कॉन के किसी भी मंदिर से श्रीमद् भागवत ग्रन्थ खरीद कर किसी को भी दान कर सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्ण नाम-जप एवं कीर्तन, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है।
पुरुषोत्तम मास में दीपदान, वस्त्र एवं श्रीमद् भागवत ग्रंथ दान का विशेष महत्व है।
आप सभी इस्कॉन के किसी भी मंदिर से श्रीमद् भागवत ग्रन्थ खरीद कर किसी को भी दान कर सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार हर तीसरे साल सर्वोत्तम यानी पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति होती है। इस मास के दौरान जप, तप, दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। इस मास में श्रीकृष्ण नाम-जप एवं कीर्तन, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीराम कथा वाचन और विष्णु भगवान की उपासना की जाती है। इस माह उपासना करने का अपना अलग ही महत्व है।
पुरुषोत्तम
मास में श्रीमद्-भागवत पढ़ने, सुनने
से भी बहुत
लाभ प्राप्त होता
है। इस मास
में जमीन पर
शयन, एक ही
समय भोजन करने
से अनंत फल
प्राप्त होते हैं।
सूर्य की बारह
संक्रांति के आधार
पर ही वर्ष
में 12 माह होते
हैं। प्रत्येक तीन
वर्ष के बाद
पुरुषोत्तम माह आता
है।
पंचांग के अनुसार
सारे तिथि-वार,
योग-करण, नक्षत्र
के अलावा सभी
मास के कोई
न कोई देवता
स्वामी है, किंतु
पुरुषोत्तम मास का
कोई स्वामी न
होने के कारण
सभी मंगल कार्य,
शुभ और पितृ
कार्य वर्जित माने
जाते हैं।
दान, धर्म, पूजन का महत्व : पुराणे शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है।
दान, धर्म, पूजन का महत्व : पुराणे शास्त्रों में बताया गया है कि यह माह व्रत-उपवास, दान-पूजा, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के सारे पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। इस माह आपके द्वारा दान दिया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है।
इसलिए अधिक मास
के महत्व को
ध्यान में रखकर
इस माह दान-पुण्य देने का
बहुत महत्व है।
इस माह भगवन्नाम
जप एवं कीर्तन,
श्रीमद्-भागवत,गीता, श्रीराम
कथा पाठन एवं
श्रवण पर विशेष
ध्यान दिया जाता
है। धार्मिक तीर्थ
स्थलों पर स्नान
करने से भी
अनंत पुण्यों की
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