Guru Purnima 2017
जय गुरुदेव
आषाढ़
मास की पूर्णिमा को
गुरू पूर्णिमा के नाम से
भी जाना जाता है और इसी
के संदर्भ में यह समय अधिक
प्रभावी भी लगता है.
इस वर्ष गुरू पूर्णिमा 9 जुलाई 2017, को मनाई जाएगी.
गुरू पूर्णिमा अर्थात गुरू के ज्ञान एवं
उनके स्नेह का स्वरुप है.
हिंदु परंपरा में गुरू को ईश्वर से
भी आगे का स्थान प्राप्त
है तभी तो कहा गया
है कि हरि रूठे
गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर. इस दिन के
शुभ अवसर पर गुरु पूजा
का विधान है. गुरु के सानिध्य में
पहुंचकर साधक को ज्ञान, शांति,
भक्ति और योग शक्ति
प्राप्त होती है.
गुरु
पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा
नाम से भी जाना
जाता है क्योंकि यह
दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण
द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी
होता है. वेद व्यास जी प्रकांड विद्वान
थे उन्होंने वेदों की भी रचना
की थी इस कारण
उन्हें वेद व्यास के नाम से
पुकारा जाने लगा.
ज्ञान का
मार्ग
है
गुरू
पूर्णिमा
|
शास्त्रों
में गुरू के अर्थ के
अंधकार को दूर करके
ज्ञान का प्रकाश देने
वाला कहा गया है. गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की
ओर ले जाने वाले
होते हैं. गुरु की भक्ति में
कई श्लोक रचे गए हैं जो
गुरू की सार्थकता को
व्यक्त करने में सहायक होते हैं. गुरु की कृपा से
ईश्वर का साक्षात्कार संभव
हो पाता है और गुरु
की कृपा के अभाव में
कुछ भी संभव नहीं
हो पाता.
भारत
में गुरू पूर्णिमा का पर्व बड़ी
श्रद्धा व धूमधाम से
मनाया जाता है. प्राचीन काल से चली आ
रही यह परंपरा हमारे
भीतर गुरू के महत्व को
परिलक्षित करती है. पहले विद्यार्थी आश्रम में निवास करके गुरू से शिक्षा ग्रहण
करते थे तथा गुरू
के समक्ष अपना समस्त बलिदान करने की भावना भी
रखते थे, तभी तो एकलव्य जैसे
शिष्य का उदाहरण गुरू
के प्रति आदर भाव एवं अगाध श्रद्धा का प्रतीक बना
जिसने गुरू को अपना अंगुठा
देने में क्षण भर की भी
देर नहीं की.
गुरु
पूर्णिमा के चंद्रमा की
तरह उच्चवल और प्रकाशमान होते
हैं उनके तेज के समक्ष तो
ईश्वर भी नतमस्तक हुए
बिना नहीं रह पाते. गुरू
पूर्णिमा का स्वरुप बनकर
आषाढ़ रुपी शिष्य के अंधकार को
दूर करने का प्रयास करता
है. शिष्य अंधेरे रुपी बादलों से घिरा होता
है जिसमें पूर्णिमा रूपी गुरू प्रकाश का विस्तार करता
है. जिस प्रकार आषाढ़ का मौसम बादलों
से घिरा होता है उसमें गुरु
अपने ज्ञान रुपी पुंज की चमक से
सार्थकता से पूर्ण ज्ञान
का का आगमन होता
है.
गुरू
आत्मा - परमात्मा के मध्य का
संबंध होता है. गुरू से जुड़कर ही
जीव अपनी जिज्ञासाओं को समाप्त करने
में सक्षम होता है तथा उसका
साक्षात्कार प्रभु से होता है.
हम तो साध्य हैं
किंतु गुरू वह शक्ति है
जो हमारे भितर भक्ति के भाव को
आलौकिक करके उसमे शक्ति के संचार का
अर्थ अनुभव कराती है और ईश्वर
से हमारा मिलन संभव हो पाता है.
परमात्मा को देख पाना
गुरू के द्वारा संभव
हो पाता है. इसीलिए तो कहा है
, गुरु गोविंददोऊ खड़े काके लागूं पाय. बलिहारी गुरु आपके जिन गोविंद दियो बताय.
गुरु पूर्णिमा महत्व |
गुरु
को ब्रह्मा कहा गया है. गुरु अपने शिष्य को नया जन्म
देता है. गुरु ही साक्षात महादेव
है, क्योकि वह अपने शिष्यों
के सभी दोषों को माफ करता
है. गुरु का महत्व सभी
दृष्टि से सार्थक है.
आध्यात्मिक शांति, धार्मिक ज्ञान और सांसारिक निर्वाह
सभी के लिए गुरू
का दिशा निर्देश बहुत महत्वपूर्ण होता है. गुरु केवल एक शिक्षक ही
नहीं है, अपितु वह व्यक्ति को
जीवन के हर संकट
से बाहर निकलने का मार्ग बताने
वाला मार्गदर्शक भी है.
गुरु
व्यक्ति को अंधकार से
प्रकाश में ले जाने का
कार्य करता है, सरल शब्दों में गुरु को ज्ञान का
पुंज कहा जा सकता है.
आज भी इस तथ्य
का महत्व कम नहीं है.
विद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं
में विद्यार्थियों द्वारा आज भी इस
दिन गुरू को सम्मानित किया
जाता है. मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेलों का
आयोजन किया जाता है.
वास्तव
में हम जिस भी
व्यक्ति से कुछ भी
सीखते हैं , वह हमारा गुरु
हो जाता है और हमें
उसका सम्मान अवश्य करना चाहिए. आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष
की पूर्णिमा 'गुरु पूर्णिमा' अथवा 'व्यास पूर्णिमा' है. लोग अपने गुरु का सम्मान करते
हैं उन्हें माल्यापर्ण करते हैं तथा फल, वस्त्र इत्यादि
वस्तुएं गुरु को अर्पित करते
हैं. यह गुरु पूजन
का दिन होता है जो पौराणिक
काल से चला आ
रहा है.
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