Mahashivratri vrat mahima pooja
vidhi
ॐ नमः शिवाय
महाशिवरात्रि व्रत महिमा एव पूजा विधि:
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हमारे हिन्दू धर्म में व्रतों का बड़ा ही महत्व बतलाया गया है। इनमें से भी सभी के द्वारा करने योग्य ' पञ्चमहाव्रत ' बतलाये गए हैं। इन पाँच व्रतों में से एक व्रत है- महाशिवरात्रि।
महाशिवरात्रि व्रत महिमा एव पूजा विधि:
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हमारे हिन्दू धर्म में व्रतों का बड़ा ही महत्व बतलाया गया है। इनमें से भी सभी के द्वारा करने योग्य ' पञ्चमहाव्रत ' बतलाये गए हैं। इन पाँच व्रतों में से एक व्रत है- महाशिवरात्रि।
महाशिवरात्रि का अर्थ उस रात्रि से है जिसका शिवतत्त्व के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। भगवान् शिवजी की अतिप्रिय
रात्रि को ' शिवरात्रि ' कहा गया है। रुद्राभिषेक-शिवार्चन और रात्रि-जागरण ही इस व्रत की प्रमुख विशेषता है। यूं तो प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि कहलाती है परन्तु फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि कहलाती है। पार्वतीजी की जिज्ञासा पर शिवजी ने बतलाया- ' महाशिवरात्रि के दिन उपवास करने वाला मुझे प्रसन्न कर लेता है। मैं अभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्चन तथा पुष्प समर्पण से भी उतना प्रसन्न नहीं होता जितना कि व्रतोपवास से।'
फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी ।
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका ।।
तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसीदयति मां ध्रुवम् ।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया ।
तुष्यामि न तथा षुष्पैर्यथा तत्रोपवासत: ॥
ईशानसंहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण
चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव श्रीशिव
शंकर जी करोड़ों सूर्यो के समान प्रभा वाले
लिङ्ग रूप में प्रकट हुए-
फाल्गुन कृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिङ्गतयोद्भूत: क्रोटिसूर्यंसमप्रभ: ॥
शिवलिङ्गतयोद्भूत: क्रोटिसूर्यंसमप्रभ: ॥
फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष
की चतुर्दशी तिथि चाहे
परा हो या पूर्वा [त्रयोदशी युक्त] हो इस व्रत
को अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में
करना चाहिये। नारदसंहिता के अनुसार जिस
दिन फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि आधी रात के
योग वाली हो उस दिन
जो महाशिवरात्रि व्रत करता है, वह व्रत
का अनन्त फल पाता है। ज्योतिषशास्त्र के
अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में
चंद्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय
जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ
योग-मिलन होता है। इस
चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव
को अभीष्टतम पदार्थ की प्राप्ति होती है।
यही महाशिवरात्रि का रहस्य है।
शिवपुराण में कोटिरुद्रसंहिता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन व्रती को प्रातः उठकर स्नान संध्या आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होने के पश्चात मस्तक पर भस्म का त्रिपुण्ड्र तिलक लगाकर गले में रुद्राक्षमाला धारण करें। तत्पश्चात शिवालय जाकर या घर पर ही शिवलिङ्ग का विधिपूर्वक पूजन करें। तत्पश्चात पुष्पाक्षत, जल लेकर श्रद्धापूर्वक यह
संकल्प करें-
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येsहं महाफलम् ।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्ज्गत्पते॥
यह कहकर हाथ में लिये पुष्पाक्षत, जल आदि को छोड़ने के बाद यह श्लोक पढ़ना चाहिये-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोsस्तु
ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।
अर्थात् हे देवदेव ! हे महादेव! हे नीलकण्ठ ! आपक्रो नमस्कार है । हे देव ! मैं आपका शिवरात्रि व्रत करना चाहता हूँ। है देवेश्वर! आपकी कृपा से यह व्रत निर्विघ्न पूर्ण हो और काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रु मुझे पीड़ित न करें। महाशिवरात्रि को व्रती दिनभर शिवमंत्र का यथाशक्ति मानस जप करे। जो नियमपूर्वक यज्ञोपवीत पहनते हैं उनको 'ऊँ नम: शिवाय' का जप करना चाहिए परंतु यज्ञोपवीत न पहनने वालों, स्त्रियों को प्रणव रहित ' शिवाय नमः' मन्त्र का ही जप करना चाहिये। यथाशक्ति पूरा दिन निराहार रहे तो उत्तम है। रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि-पूजा कर सकते हैं। हमारे धर्मग्रंथों में महाशिवरात्रि को रात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का विधान है। चार प्रहरों में प्रायः भारतीय समयानुसार सायं 6:30 से रात 9:30 बजे तक प्रथम प्रहर, 9:31 से 12:30 बजे तक दूसरा प्रहर, 12:31 से 3:30 बजे तक तीसरा प्रहर और 3:31 से सूर्योंदय होने तक चतुर्थ प्रहर होता है(इसमें स्थानीय सूर्योदय के आधार पर कुछ मिनटों का अंतर होता है)।
पूजन विधि
सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर में जाकर अथवा घर पर ही (यदि शिव प्रतिमा, नर्मदेश्वर या अन्य कोई उत्तम शिवलिंग हो) पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-
सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर में जाकर अथवा घर पर ही (यदि शिव प्रतिमा, नर्मदेश्वर या अन्य कोई उत्तम शिवलिंग हो) पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-
' ॐ श्रीगणपतिर्जयतिः विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:
श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य
विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य
ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे
श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे
अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे
जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे बौद्धावतारे
आर्यावर्तैकदेशे . ..(शहर का नाम)... .नगरे/ग्रामे,
शिशिर ऋतौ, . .(संवत्सर का नाम).. .नाम्नि संवत्सरे, फाल्गुन मासे, कृष्ण
पक्षे, चतुर्दशी तिथौ, ..(वार का नाम). ..वासरे, . .(गोत्र का नाम).. .गोत्रीय ., ..(आपका नाम). ..अहम्, . .
(प्रातः/मध्याह्न/सायाह्न). ..काले अद्य ममाखिल-पापक्षयपूर्वक- सकलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च
शिवपूजनमहं करिष्ये।'
१ - ' ॐ नमः शिवाय लं पृथिव्यात्मकं गंधं समर्पयामि।' कहकर शिवजी को चन्दन का तिलक लगाए।
२ - ' ॐ नमः शिवाय हं आकाशात्मकं पुष्पम् समर्पयामि।' से शिवजी को फूल अर्पित करें।
३ - ' ॐ नमः शिवाय यं वाय्वात्मकं धूपम् आघ्रापयामि।' बोलकर सदाशिव जी को धूप दिखाएँ।
४ - ' ॐ नमः शिवाय रं वह्न्यात्मकं दीपम् दर्शयामि। ' कहकर शिवजी को दीप दिखाएँ।
५ - ' ॐ नमः शिवाय वं अमृतात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि।' मंत्र से शिवजी को नैवेद्य अर्पित करें।
६ - ' ॐ नमः शिवाय सौं सर्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य समर्पयामि।' द्वारा शिवजी को
पूगीफल- पान अर्पित करें व सभी उपचार समर्पित करने की भावना करें। बिल्व पत्र अर्पित करे एवं भव,
शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम और ईशान , इन आठ नामों से शिवजी को पुष्प अर्पित कर शंकर भगवान की आरती व परिक्रमा करें। महाशिवरात्रि को श्रद्धापूर्वक रुद्राभिषेक करना अति उत्तम है। व्रती को फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप और नैवेद्य से चारों प्रहर की पूजा करनी चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिव को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहरों के पूजन में जागरण करते हुए पंचोपचार अथवा षोडशोपचार, यथालब्धोपचार से पूजन करते समय शिवपंचाक्षर (उपरोक्त) मन्त्र से अथवा रुद्रपाठ से भगवान का जलाभिषेक करना चाहिये। साथ ही भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम और ईशान इन नामों से उपरोक्त प्रकार से पुष्पाञ्जलियाँ भी दे। रात्रि में ' ॐ नमः शिवाय ' का अधिकाधिक जप एवं सदाशिव के विविध स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए। अंत में चौथे प्रहर की पूजा के बाद भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-
शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम और ईशान , इन आठ नामों से शिवजी को पुष्प अर्पित कर शंकर भगवान की आरती व परिक्रमा करें। महाशिवरात्रि को श्रद्धापूर्वक रुद्राभिषेक करना अति उत्तम है। व्रती को फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप और नैवेद्य से चारों प्रहर की पूजा करनी चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिव को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहरों के पूजन में जागरण करते हुए पंचोपचार अथवा षोडशोपचार, यथालब्धोपचार से पूजन करते समय शिवपंचाक्षर (उपरोक्त) मन्त्र से अथवा रुद्रपाठ से भगवान का जलाभिषेक करना चाहिये। साथ ही भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान्, भीम और ईशान इन नामों से उपरोक्त प्रकार से पुष्पाञ्जलियाँ भी दे। रात्रि में ' ॐ नमः शिवाय ' का अधिकाधिक जप एवं सदाशिव के विविध स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए। अंत में चौथे प्रहर की पूजा के बाद भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-
नियमो यो महादेव कृतश्चैव
त्वदाज्ञया।
विसृज्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्॥
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
सन्तुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि॥
अर्थात ' हे महादेव ! आपकी आज्ञा से मैंने जो यह व्रत किया, हे स्वामिन्! वह परम उत्तम व्रत पूर्ण हो गया। अत: अब उसका विसर्जन करता हूँ। हे देवेश्वर शर्व! यथाशक्ति किये गये इस व्रत से आप आज मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हों।' अशक्त होनेपर यदि चारों प्रहर की पूजा न हो सके तो पहले प्रहर की पूजा अवश्य करनी चाहिये और अगले दिन प्रातःकाल पुनः स्नानकर भगवान् शङ्कर की पूजा करने के पश्चात् व्रत की पारणा करनी चाहिये । स्कन्दपुराण के अनुसार इस प्रकार अनुष्ठान करते हुए शिवजी का पूजन, जागरण और उपवास करने वाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता।
इस महान् पर्वके विषय में एक आख्यान के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन पूजन करती हुई किसी स्त्री का आभूषण चुरा लेने के अपराध में मारा गया कोई व्यक्ति इसलिये शिवजी की कृपा से सद्गति को प्राप्त हुआ क्योंकि चोरी करनेके प्रयास में वह आठ प्रहर भूखा-प्यासा व जागता रहा। इस कारण अनायास ही व्रत हो जाने से शिवजी ने उसे सद्गति प्रदान कर दी । इस व्रत की महिमा का पूर्णरूप से वर्णन करना मानव शक्तिसे बाहर है। अत: कल्याणके इच्छुक सभी मनुष्यों को यह व्रत अवश्य करना चाहिये। महाशिवरात्रि पर त्रिनेत्रधारी भगवान शिव को हमारा बारम्बार प्रणाम।
विसृज्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्॥
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
सन्तुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि॥
अर्थात ' हे महादेव ! आपकी आज्ञा से मैंने जो यह व्रत किया, हे स्वामिन्! वह परम उत्तम व्रत पूर्ण हो गया। अत: अब उसका विसर्जन करता हूँ। हे देवेश्वर शर्व! यथाशक्ति किये गये इस व्रत से आप आज मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हों।' अशक्त होनेपर यदि चारों प्रहर की पूजा न हो सके तो पहले प्रहर की पूजा अवश्य करनी चाहिये और अगले दिन प्रातःकाल पुनः स्नानकर भगवान् शङ्कर की पूजा करने के पश्चात् व्रत की पारणा करनी चाहिये । स्कन्दपुराण के अनुसार इस प्रकार अनुष्ठान करते हुए शिवजी का पूजन, जागरण और उपवास करने वाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता।
इस महान् पर्वके विषय में एक आख्यान के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन पूजन करती हुई किसी स्त्री का आभूषण चुरा लेने के अपराध में मारा गया कोई व्यक्ति इसलिये शिवजी की कृपा से सद्गति को प्राप्त हुआ क्योंकि चोरी करनेके प्रयास में वह आठ प्रहर भूखा-प्यासा व जागता रहा। इस कारण अनायास ही व्रत हो जाने से शिवजी ने उसे सद्गति प्रदान कर दी । इस व्रत की महिमा का पूर्णरूप से वर्णन करना मानव शक्तिसे बाहर है। अत: कल्याणके इच्छुक सभी मनुष्यों को यह व्रत अवश्य करना चाहिये। महाशिवरात्रि पर त्रिनेत्रधारी भगवान शिव को हमारा बारम्बार प्रणाम।
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